कौमुदीमित्रानंद में प्रतिपादित जीवनोपयोगी शिक्षा
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https://doi.org/10.47413/e4xe0f42Abstract
काव्य शास्त्र में काव्य कें छ प्रयोजन बतायें गये है। यश प्राप्ति, अर्थप्राप्ति, व्यवहार ज्ञान, अमंगल नाश, तत्काल अत्यंत आनंद और पत्नी के समान उपदेश.1 इन छ प्रयोजन में यश प्राप्ति, धन प्राप्ति और अमंगल नाश ये कवि के लिए प्रयोजन सिद्ध होते है और व्यवहार ज्ञान, तत्काल अत्यंत आनंद और पत्नी के समान उपदेश ये तीन पाठक, श्रौता और दर्शको के लिए होते है।
व्यवहार ज्ञान को आधार बनाकर कौमुदी मित्रानंद नामक प्रकरण में जो तत्त्व प्राप्त होते है उनकी चर्चा करना इस लेख का विषय है।
प्रस्तुत प्रकरण ‘कौमुदीमित्रानंद’ के रचयिता रामचंद्र सूरि है जिनका समय इसा की 12 वीं शताब्दी है। ये कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य के पट्ट शिष्य थे। ये केवल कवि ही नहीं आचार्य भी थे। गुणचंद्र के साथ मिलकर इन्होंने प्रसिद्ध नाट्य शास्त्रीय ग्रंथ नाट्य दर्पण की रचना की थी। उन्होंने कुल दश रूपकों, पांच नाटक, तीन प्रकरण और नाटिका की रचना की हैं। ‘कौमुदी मित्रानंद’ 10 अंको का प्रकरण है। दश रूपकों के भेदो में नाटक के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थिति प्रकरण की ही है।
आचार्य रामचंद्र सूरि अपनी इस कृति का प्रारंभ भगवान् ऋषभदेव की स्तुति के साथ करते है। न केवल मङ्गलाचरण में, अपितु इस नाटक में चित्रित अन्य सङ्कटकालीन परिस्थितियों में भी वे भगवान् की शरण ग्रहण करने का निर्देश करते है। यहीं जीवन शिक्षा है, हम जब भी मुश्केली में आयें तब हमें हमारे इष्ट देव को याद करकें किसी भी परिस्थिति में बीना घबरायें आगे बढना चाहिए। य़था
References
1. काव्य प्रकाश , 1।2 काव्यं यशसेSर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षयते। सद्यः परनिवृर्तये कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे।।
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