जीवनी और महिला लेखनः छूटे पन्नो की उड़ान – एक समीक्षा
DOI:
https://doi.org/10.47413/vidya.v2i2.198Abstract
दलित साहित्य मनुष्य को मनुष्य के रुप में देखता है। जिसे हम दलित मनोवैज्ञानिक मुक्ति का साहित्य कहते है। हशिये के बहार पडा भारतीय दलित समाज आज आत्मसम्मान तथा बहिस्कृत जिंदगी से मुक्ति पाने का संघर्ष एवं अपने आत्मसम्मान की पहचान की लडाई लड़ रहा है। शोषण के प्रति विद्रोह भाव जगाना ही साहित्य कर्मियों का कर्तव्य है। दलित साहित्य का उद्देश्य दलित समाज में जागृति पैदा करके उनमें स्वाभिमान भरना है। वे चाहते है कि संपूर्ण समाज व्यवस्था को नष्ट करके समान समाज व्यवस्था का निर्माण हो, नवीन समाज व्यवस्था निर्मित हो वहाँ हरेक व्यक्ति को समान अधिकार मिले।
References
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