नीतिशतक में कवि भर्तृहरि का मानवजीवन के लिए उचित संदेश
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https://doi.org/10.47413/vidya.v3i1.448Keywords:
नीति शब्द का अर्थ - विद्या का गौरव- सदाचार – दुर्जन निंदा - मूर्खों का उपहास - अटल कर्म - पुरुषार्थ - मित्रता - धन का महत्व।Abstract
संस्कृत साहित्य में मानव जीवन को आलोकित करने वाली लोककथाओं-नैतिक कथाओं का प्रादुर्भाव हुआ है। शतककाव्य की परंपरा में कवि भर्तृहरि की नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक आदि रचनाएँ मनुष्य के व्यावहारिक जीवन को छूने वाले विषय प्रस्तुत करती हैं। नीतिशतक में कवि भर्तृहरि ने एक ओर सज्जनों की प्रशंसा की है तो दूसरी ओर दुष्टों की निंदा की है। यहाँ कवि ने विभिन्न दृष्टान्तों के माध्यम से ब्रह्मा को भी समझाने में असमर्थ दिखाकर मूर्खों का उपहास किया है। नीतिशतक में सद्गुणों और सज्जनों की महिमा है। और विद्या धन को सभी धनों में सर्वोत्तम कहा गया है। यहां दूध और पानी तथा शाम और सुबह की परछाइयों के उदाहरणों के माध्यम से सज्जनों और दुर्जनों की दोस्ती के बीच के अंतर को दर्शाया गया है। साथ ही यहां कर्म की गति, शुद्ध चरित्र, कठोर पुरुषार्थ , शक्तिशाली प्रारब्ध, धन का महत्व, सत्संगति, बुराइयों से भरी राजनीति आदि पर भी प्रकाश डाला गया है। यहाँ कवि ने विभिन्न व्यावहारिक उदाहरण देकर मानव जीवन को छूने वाली सभी बातों को समझाने का प्रयास किया है।
References
संस्कृत साहित्य में नीतिकथा का उद्गम एवं विकास
नीतिशतकम् – श्लोक-१६
नीतिशतकम् – श्लोक-२३
नीतिशतकम् – श्लोक-६७
नीतिशतकम् – श्लोक-१०२
नीतिशतकम् – श्लोक-४
नीतिशतकम् – श्लोक-२७
नीतिशतकम् – श्लोक-४०
नीतिशतकम् – श्लोक-८२
नीतिशतकम् – श्लोक-४९
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वैदिक दर्शन – आचार्य उदयवीर शास्त्री
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